halo alkane ie
उदाहरण 1. C5H11Br आठ संरचनात्मक समावयवियाें की संरचनाएं बनाइए। प्न्च्।ब् पद्धति के अनुसार सभी समावयवियों के नाम दीजिए तथा उन्हें प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ब्रोमाइडों के रूप में वर्गीकृत कीजिए।
CH3CH2CH2CH2CH2Br 1-czkseksisUVu ¼1°)
CH3CH2CH2CH(Br)CH3 2- czkseksisUVu ¼2°)
CH3CH2CH2CH(Br)CH2CH3 3- czkseksisUVu ¼2°)
(CH3)2CHCH2CH2Br 1-
(CH3)2CBrCH2CH3
CH3C(C2H5)2CH2Br
CH3CH2CH(CH3)CH2Br
(CH3)2CCH2Br
उदाहरण 3. (CH3)2CHCH2CH3 के मुक्त मूलक क्लोरीनन से बनने वाले सभी संभावित मोनोक्लोरो संरचनात्मक समावयवों को पहचानिए।
हल
दिए गए अणु में चार विभिन्न प्रकार के हाइडंोजन परमाणु हैं। इन हाइडंोजन परमाणुओं के प्रतिस्थापन से निम्नलिखित चार मोनोक्लोरो व्युत्पन्न प्राप्त होंगे-
(CH3)2CHCH2CH2CI (CH3)2CHCH(CI)CH3
(CH3)2C(CI)CH2CH3 CH3CH(CH2CI)CH2CH3
उदाहरण 4. निम्नलिखित अभिक्रियाओं के उत्पाद लिखिए-
उदाहरण 5. हैलोऐल्केन की KCN से अभिक्रिया करके मुख्य उत्पाद के रूप में ऐल्किल सायनाइड बनाते हैं, जबकि ।AgCN से अभिक्रिया करने पर आइसोसायनाइड प्रमुख उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है। समझाइए।
हल
KCN प्रमुखतः आयनिक होता है तथा विलयन में सायनाइड आयन देता है। यद्यपि कार्बन तथा नाइट्रोजन दोनों ही परमाणु इलेक्ट्रॉन युगल प्रदान करने की स्थिति में होते हैं परंतु आक्रमण मुख्यतः कार्बन परमाणु के द्वारा होता है न कि नाइट्रोजन परमाणु के द्वारा; क्योंकि C-C आबंध C-N आबंध की तुलना में अधिक स्थायी होता है। तथापि, ।AgCN मुख्यतः सहसंयोजक प्रकृति का होता है तथा इसका नाइट्रोजन परमाणु इलेक्ट्रॉन युगल प्रदान करने के लिए सक्षम होता है, इसलिए आइसोसायनाइड मुख्य उत्पाद के रूप में बनता है।
उदाहरण 6.
निम्नलिखित हैलोजन यौगिकों के युगलों में कौन सा यौगिक ैछ2 अभिक्रिया तीव्रता से देगा?
बीमउ10ण्40
हल
यह प्राथमिक हैलाइड है अतः ैछ2 अभिक्रिया तीव्रता से देता है। बड़े आकार के कारण आयोडीन बेहतर अवशिष्ट समूह है अतः आने वाले
नाभिकरागी की उपस्थिति में द्रुत वेग से निकल जाएगा।
बीमउ10ण्41 बीमउ10ण्42
उदाहरण 7.SN1 व SN2 अभिक्रिया में निम्नलिखित यौगिकों की अभिक्रियाशीलता का क्रम अनुमानित कीजिए।
(1.) ब्रोमोब्यूटेन के चार समावयवी
(2.) C6H5CH2Br, C6H5CH(C6H5)Br,
C6H5CH(CH3)Br, C6H5C(CH3)C6H5Br
हल
(1.) CH3CH2CH2CH2Br
<(CH3 ) 2CHCH2Br >< (CH3)2CHCH2Br<CH3CH2
CH(Br)CH3<(CH3)3CBr(S 1
CH3CH2CH2CH2Br
> (CH3)2CHCH2Br> CH3CH2CH(Br)CH3
> (CH3)3CBr (SN2) (CH3)2CH- समूह के इलेक्ट्रॉन दाता प्रेरणिक प्रभाव के अधिक होने के कारण दो प्राथमिक ब्रोमाइडों में से (CH3)2CHCH2Br से निर्मित मध्यवर्ती कार्बोकैटायन, CH3CH2CH2CH2Br से बने कार्बोकैटायन की अपेक्षा अधिक स्थायी होगा। अतःSN1 अभिक्रिया में CH3CH2CH2CH2Br की अपेक्षा (CH3)2CHCH2Br अधिक क्रियाशील होता है। CH3CH2CH(Br)CH3 एक द्वितीयक ब्रोमाइड है। जबकि (CH3)3CBr तृतीयक ब्रोमाइड है, अतः SN1 अभिक्रिया के लिए अभिक्रियाशीलता का क्रम उपरोक्त होता है। SN2 अभिक्रिया में उपर्युक्त अभिक्रियाशीलता का क्रम विपरीत हो जाता है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन रागी कार्बन पर त्रिविम बाधा इसी क्रम में बढ़ती है।
(2.) C6H5C(CH3)(C6H5)Br
> C6H5CH(C6H5)Br > C6H5CH(CH3)Br
> C6H5CH2Br(SN1) C6H5C(CH3)(C6H5)Br
< C6H5CH(C6H5)Br < C6H5CH(CH3)Br
< C6H5CH2Br(SN2) दोनों द्वितीयक ब्रोमाइडों में से, C6H5CH
(C6H5)Br से प्राप्त कार्बोकैटायन माध्यमिक, C6H5CH
(CH3)Br से प्राप्त होने वाले माध्यमिक की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है, क्योंकि यह दो प़फ़ेनिल समूहों द्वारा अनुनाद के कारण स्थायित्व प्राप्त कर लेता है। इसलिए, पहला ब्रोमाइड दूसरे की अपेक्षा SN1 अभिक्रियाओं में अधिक क्रियाशील होता है। प़्ाफ़ेनिल समूह मेथिल समूह से अधिक स्थूल होता है, इसलिए SN2 अभिक्रियाओं में C6H5CH
(C6H5)Br C6H5CH(CH3)Br की अपेक्षा कम क्रियाशील होता है।
उदाहरण 10ण्8
निम्नलिखित यौगिकों के युगलों में से काइरल व एकाइरल यौगिकों को पहचानिए। (वेज तथा डेश निरूपण कक्षा 11 चित्र 12-1 के अनुसार)
उदाहरण 10ण्9
क्लोरीन यद्यपि इलेक्ट्रॉन अपनयक समूह है फिर भी यह ऐरोमैटिक इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में ऑर्थाे- तथा पैरा- निर्देशक है, क्यों?
हल
प्रेरण प्रभाव के कारण क्लोरीन इलेक्ट्रॉन आकर्षित करती है तथा अनुनाद के कारण इलेक्ट्रॉन निर्गमित करती है। प्रेरण प्रभाव के कारण क्लोरीन इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में बने मध्यवर्ती कार्बोकैटायन को अस्थायित्व प्रदान करती है।
अनुनाद के द्वारा हैलोजन कार्बाेकैटायन को स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करती है तथायह प्रभाव आर्थो एवं पैरा-स्थितियों पर अधिक प्रबल होता है। अनुनाद प्रभाव की तुलना म प्रेरण प्रभाव अधिक प्रबल होता है, अतः नेट प्रभाव इलेक्टंॉन अपनयन करने का होता है जिससे निष्क्रियण उत्पन्न होता है। ऑर्थो एवं पैरा- स्थिति पर आक्रमण में अनुनाद प्रभाव, प्रेरण प्रभाव के विपरीत कार्य करता है, अतः ऑर्थो एवं पैरा- स्थिति के निष्क्रियण को कम करता है। इस प्रकार अभिक्रियाशीलता, प्रबल प्रेरण प्रभाव के द्वारा तथा अभिविन्यास, अनुनाद प्रभाव के द्वारा नियंत्रित होता है।
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